भारती संस्कृतमास पत्रिका
संपादकीय
सूक्ति सुधा
अनादरो विलम्बश्च वै मुख्यम निष्ठुर वचनम।
पश्चतपश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च।।
अर्थ — अपमान करके देना, मुंह फेर कर देना, देरी से देना, कठोर वचन बोलकर देना और देने के बाद पछ्चाताप होना। ये सभी 5 क्रियाएं दान को दूषित कर देती है।
आगामी गतिविधियाँ
नवनीतम अंक
अवलोकयति संख्या
आज 22
कल 32
इस सप्ताह 54
इस मास 76
समस्त 25756
अभी ऑनलाइन एक अतिथि और कोई सदस्य नहीं